5 Easy Facts About Shodashi Described

Wiki Article



ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं 

वास्तव में यह साधना जीवन की एक ऐसी अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है फिर भी पांच दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं—

काञ्चीवासमनोरम्यां काञ्चीदामविभूषिताम् ।

Inside the context of electrical power, Tripura Sundari's attractiveness is intertwined together with her energy. She's not merely the symbol of aesthetic perfection but also of sovereignty and triumph over evil.

सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥

She may be the 1 having Severe beauty and possessing electrical power of delighting the senses. Exciting intellectual and emotional admiration within the three worlds of Akash, Patal and Dharti.

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ Shodashi को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं जगदद्यापि दृश्यते ॥६॥

हार्दं शोकातिरेकं शमयतु ललिताघीश्वरी पाशहस्ता ॥५॥

॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥

चक्रे बाह्य-दशारके विलसितं देव्या पूर-श्र्याख्यया

The reverence for Tripura Sundari transcends mere adoration, embodying the collective aspirations for spiritual progress as well as attainment of worldly pleasures and comforts.

The intricate romantic relationship between these teams and their respective roles from the cosmic get is really a testament towards the abundant tapestry of Hindu mythology.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

Report this wiki page